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ध्यान करने के लाभ महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन में योग के आठ अंगों का सा
ध्यान करने के लाभ
महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन में योग के आठ अंगों का सांगोपांग वर्णन किया है | योग के आठ अंगों (यम, नियम, आसन , प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी ) में ध्यान सातवें क्रम पर है | योगदर्शन में लिखा गया है -'तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्' अर्थात् ध्येय विषय में चित्त की वृत्ति का निरंतर लगे रहना ध्यान कहलाता है |धारणा की परिपक्व अवस्था का नाम ही ध्यान है | अतः जिन स्थानों पर धारणा के लिए निर्देश किया गया है उसी स्थान पर ध्यान भी लगाना चाहिए|
जप के द्वारा ध्यानावस्था में जाने के लिए, जप के शब्द और अर्थज्ञान और अभीष्ट वस्तु या पदार्थ तीनों का ज्ञान रहना धारणा है |जब शब्द को छोड़कर ज्ञान की एकतानता तेल धारा के समान बनी रहे, ज्ञानधारा बीच में टूटे नहीं तो वह ही ध्यान की स्थिति कहलाती है |ध्यान की सफलता के लिए नित्य ध्यान का अभ्यास करना आवश्यक है | धीरे-धीरे ध्यान के समय को बढ़ाना चाहिए |
ध्यान का स्थान व समय -
ध्यान करने का स्थान स्वच्छ, शांत व पवित्र होना चाहिए | ध्यान करते समय सूर्य की दिशा में मुख होना चाहिए अर्थात् प्रातः पूर्व दिशा की और व सायं पश्चिम दिशा की ओर |ध्यान का स्थान हवादार होना चाहिए | ध्यान करने का उत्तम समय प्रातः ब्रह्ममूहर्त व सायंकाल में सूर्यास्त होता है |
लाभ-
१. ध्यान का अभ्यास करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है |
२. ध्यान करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है |
३. ध्यान से मन शांत रहता है |
४. ध्यान मानसिक तनाव कम करता है |
५ . ध्यान से बुद्धि का विकास होता है |
६. ध्यान व्यक्ति के भविष्य की उत्तम योजनाओं के निर्माण में सहायक
होता है |
७. ध्यान नकारात्मक विचारों को दूर करता है व सकारात्मक विचारों का
आधान करता है |
८. इसके अतिरिक्त भी ध्यान करने से अलौकिक लाभ होते है जिनका
अनुभव ध्यान करने पर ही अनुभव किया जा सकता है |